Saturday, May 12, 2018

gaNapati atharvasheersha - गणपति अथर्वशीर्ष

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शान्तिपाठ

ॐ भद्रं कर्णेभि शृणुयाम देवा:।

भद्रं पश्येम्  अक्षभिर्यजत्रा:।।

स्थिरै रंगै स्तुष्टुवां सहस्तनुभि:।

व्यशेम देवहितं यदायु:।1।


ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा:।

स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:।

स्वस्ति नः तार्क्ष्यो अरिष्ट नेमि:।।

स्वस्ति नो बृहस्पति: दधातु ।2।


ॐ शांति:। शांति:।। शांति:।।।


ॐ नमस्ते गणपतये।

त्वम् एव प्रत्यक्षं तत्वम् असि ।।

त्वम् एव केवलं कर्त्ताऽअसि।

त्वम् एव केवलं धर्ता असि।।

त्वम् एव केवलं हर्ताऽअसि।

त्वम् एव सर्वं खलु इदं  ब्रह्म असि।।

त्वं साक्षात् आत्मा असि नित्यम्।

ऋतं वच्मि।। सत्यं वच्मि।।

अव त्वं मां।। अव वक्तारं।।

अव श्रोतारं। अवदातारं।।

अव धातारम अवानूचानम्  अवशिष्यं।।

अव पश्चातात्।। अव पुरस्तात्।।

अव उत्तरात्तात ।। अव दक्षिणात्तात्।।

अव च उर्ध्वात्तात।। अव अधरात्तात।।

सर्वतो मां पाहिपाहि समंतात्।।3।।


त्वं वाङग्मय: त्वं चिन्मय:।

त्वं आनन्दमयः त्वं ब्रह्ममय:।।

त्वं सच्चिदानंद अद्वितियोऽसि।

त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।

त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।4।

सर्व जगत् इदं त्वत् तो  जायते।

सर्व जगत् इदं त्वत् तः तिष्ठति।

सर्व जगत् इदं त्वयि लयम् इष्यति ।।

सर्व जगत् इदं त्वयि प्रत्येति।।

त्वं भूमि: आपः अनलो अनिलो नभ:।।

त्वं चत्वारि वाक् पदानि।।5।।


त्वं गुण: त्रयातीत: त्वम् अवस्था त्रयातीत:।

त्वं देहत्रयातीत: त्वं कालत्रयातीत:।

त्वं मूलाधार स्थितोऽसि नित्यं।

त्वं शक्ति त्रयात्मक:।।

त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यम्।


त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णु: त्वं रुद्र: त्वं  इन्द्र: त्वं अग्नि: त्वं वायु: त्वं सूर्य: त्वं चंद्रमा: त्वं  ब्रह्मभूर्भुव: स्वरोम्।।6।।

गणादिं पूर्वम् उच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।।

अनुस्वार: परतर:।। अर्धेन्दुलसितं।।

तारेण ऋद्धं।। एतत्तव मनुस्वरूपं।।

गकार: पूर्व रूपं अकारो मध्यरूपं।

अनुस्वार" शान्त्य रूपं।। बिन्दुरूत्तर रूपं।।

नाद: संधानं।। संहिता संधि: सैषा गणेश विद्या।।

गणक ऋषि: निचृत् गायत्री छंद:।। ग‍णपति देवता।।

ॐ गं गणपतये नम:।।7।।


एकदंताय विद्महे। वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नोदंती प्रचोद्यात।।

एकदंत चतुर्हस्तं पाशं अंकुश धारिणम्।।

रदं च वरदं च हस्तै र्विभ्राणं मूषक ध्वजम्।।

रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।।

रक्त गंधाऽ अनुलिप्त अंगं रक्तपुष्पै सुपूजितम्।।8।।

भक्त अनुकंपिनम्  देवं जगत् कारणम् अच्युतं ।।

आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृतै: पुरुषात् परम।।

एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनांवर:।। 9।।


नमो व्रातपतये नमो गणपतये।। नम: प्रमथपतये ।।

नमस्तेऽ अस्तु लंबोदाराय एकदंताय विघ्ननाशिने शिव सुताय।

श्री वरदमूर्तये नम:।।10।।


फलश्रुति

एतद् अर्वशीर्ष योऽधीते।।

स: ब्रह्मभूयाय कल्पते।।

स सर्वत: सुख मेधते

स सर्वविघ्नै न बाध्यते।। 11।।

स पन्च महापापात्  प्रमुच्यते

सायम् अधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।।

प्रात: अधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।।

सायं प्रात: प्रयुंजानो अपाप: उद्भवति ।

सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।।

धर्मार्थ काममोक्षं च विन्द्यते।।12।।

इदम्  अथर्वशीर्षम्  अशिष्यायन देयम।।

यो यदि मोहात् द्यासति स पापीयान भवति।।

सहस्त्र आवर्तनात् यं यं काममधीते तं तम् अनेन साधयेत।।13 ।।


अनेन गणपतिम् अभिषिं‍चति स वाग्मी भ‍वति।।

चतुर्थ्यां मनः श्रु: जपति स विद्यावान् भवति।।

इति अथर्वण वाक्यं।। ब्रह्म आद्य आचरणं विद्यात

न बिभेती कदाचनेति।।14।।


यो दूर्वांकुरै र्यजति स वैश्रवणोपमो भवति।।

यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति।। स: मेधावान भवति।।

यो मोदक सहस्त्रेण यजति।

स वांञ्छित फलम् वाप्नोति।।

य: साज्य समिद्भिः यजति, स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।15।।


अष्टो ब्राह्मणां सम्यक् ग्राहयित्वा सूर्यवर्चस्वी भवति।।

सूर्य गृहे महानद्यां प्रतिभासंनिधौ वा जपत्वा सिद्ध मंत्रो भवति।।

महाविघ्नात्  प्रमुच्यते।। महादोषात् प्रमुच्यते।। महापापात् प्रमुच्यते।

स सर्व विद्भवति स सर्वविद्भवति। य एवं वेद इत्युपनिषद।।16।।


ॐ सहनाववतु सहनोभुनक्तु सहवीर्यं करवावहै
तेजस्विनां अधीतं अस्तु मा विद् विषावहै
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः

।। अर्थर्ववैदिय गणपत्युनिषदं समाप्त:।।


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